यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

जीवन निशदिन छूट रहा है



जीवन निशदिन छूट रहा है

जैसे   मुझसे   रूठ  रहा  है

क्या बतलाऊं समझ न आता

अंदर ज्यों  कुछ टूट रहा है

जीवन निशदिन छूट रहा है

 

तेरा   मेरा   सब    करते   हैं

अपना  अपना  सब भरते हैं

अवसर पाते  ही सब के सब

औरों  पर   बोझा   धरते  हैं.

सब कोई सब को कूट रहा है

जीवन निश-दिन छूट रहा है

 

कोई   कोई  मुस्काते  हैं

कोई  -  कोई   ही  गाते हैं

ज्यादा   रोने   जैसे   चेहरे

उदासियाँ  भर  भर खाते हैं

बहुमत में अब  झूठ रहा है

जीवन निशदिन छूट रहा है

 

फिर भी जग बहता सा दरिया

सुख दुःख ही जीवन का जरिया

भूखे   पेट   भी  हंसने  वाले

देखो  जैसे   अपना   हरिया

जग  ही  जग  हो लूट रहा है

जीवन  निश-दिन  छूट रहा है

 

बड़ी  मीन  छोटी  को  खाती

खाकर  शान्ति गी त है गाती

ऐसे  ही  स्वभाव की  दुनिया

निर्बल  पर  बल  अजमाती है

जहाँ   जो   पाये  लूट  रहा  है    

जीवन  निश-दिन  छूट रहा है

 

पवन तिवारी

०९/०४/२०२५


संवाद : ७७१८०८०९७८  

 

  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें