बिना काम के काम भी
करते देखा है
दूसरे की खुशियों में जलते देखा है
भूखों मरते हैं हमने था सुन रक्खा
गिद्धों को तो खाकर मरते देखा है
जिनको जिद होती है बुलंदी पाने की
सौ-सौ मौत से उनको भिड़ते देखा है
आदमी से खुदगर्ज़ नहीं देखा मैंने
निज खातिर अपनों से लड़ते देखा है
आदमी की लालच भी कितनी उम्दा है
अपने कद से भी नीचे गिरते देखा है
संकल्पों की शक्ति
की तुम्हें है पता पवन
मिटे हुए को हमने बनते देखा है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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