यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

बिना काम के


बिना काम  के काम भी करते देखा है
दूसरे  की  खुशियों  में जलते देखा है

भूखों  मरते हैं  हमने  था सुन रक्खा
गिद्धों  को  तो  खाकर मरते  देखा है

जिनको  जिद  होती है बुलंदी पाने की
सौ-सौ  मौत से  उनको भिड़ते देखा है

आदमी  से  खुदगर्ज़ नहीं  देखा  मैंने
निज  खातिर अपनों से लड़ते  देखा है

आदमी की लालच भी कितनी  उम्दा है
अपने  कद से भी नीचे  गिरते देखा है

संकल्पों की शक्ति की तुम्हें है पता पवन
मिटे  हुए  को   हमने  बनते  देखा  है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत   

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