जो बहुत कहते हैं अपने नहीं होते
अपने
वक्त आने पर यही लोग हैं
लगते कंपने
जो भी देखा है
जरूरी नहीं वो सच ही हो
झूठ निकले हैं
कई बार जो
देखे सपने
इश्क क्या चीज है बस
इससे समझ जाओगे
वो जो बुजदिल था हुआ
इश्क तो लगा तपने
सत्ता क्या चीज कि
दुश्मन मेरे कुत्ते हो गये
कुर्सी क्या दे
दी सुबह - शाम लगे हैं जपने
खूब लूटे शरीफ खूब बने सत्ता में
सत्ता जाते ही
एक – एक लगे हैं
नपने
कैसे मंगवाएं कि अखबार
घर में बच्चे हैं
गुंडे बदमाश सबसे ज्यादा लगे
हैं छपने
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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