यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 19 अगस्त 2019

तुम्हें चाहने की


तुम्हें  चाहने  की सजा  पा रहा हूँ
कि रोते  हुए भी सनम गा  रहा हूँ

मंजिल  पता  थी सही  रास्ता भी
मगर अब लगे कि कहाँ जा रहा हूँ

जब से सनम  दूरियाँ बढ़ गयी हैं
जाने लगे क्यों  क़रीब  आ रहा हूँ

मेरे  हौसले को वो  मापेगा  क्या
गैरों तलक के मैं गम  खा रहा हूँ

ताकत से उसका बदन पा लिया वो
मगर  रूह  से  दूर  ही पा रहा हूँ

मेरे  हुनर  का  तो जलवा है ऐसा
दुश्मन के दिल में भी मैं छा रहा हूँ

मेरा प्यार भी अफलातूँ  ऐसा कुछ है
सनम को  लगे है कहर  ढा  रहा हूँ

मेरे  गीत कविता का आलम तो देखो
कि कमसिन कलम को भी मैं भा रहा हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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