तुम्हें चाहने की
सजा पा रहा हूँ
कि रोते हुए भी सनम गा रहा हूँ
मंजिल पता थी
सही रास्ता भी
मगर अब लगे कि कहाँ
जा रहा हूँ
जब से सनम दूरियाँ बढ़ गयी हैं
जाने लगे क्यों क़रीब आ रहा हूँ
मेरे हौसले को वो मापेगा क्या
गैरों तलक के मैं गम खा रहा हूँ
ताकत से उसका बदन पा
लिया वो
मगर रूह से दूर ही
पा रहा हूँ
मेरे हुनर का
तो जलवा है ऐसा
दुश्मन के दिल
में भी मैं छा रहा हूँ
मेरा प्यार भी अफलातूँ ऐसा कुछ है
सनम को लगे
है कहर ढा रहा हूँ
मेरे गीत कविता
का आलम तो देखो
कि कमसिन कलम को भी
मैं भा रहा हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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