कैसे मान लूँ
मेरे एक दोस्त
हैं,कहते हैं,बिना देखे
कैसे मान लूँ ?
वे कहते हैं हर बात
पर
कैसे मान लूं ?
तर्क करो,साबित करो,
बिना देखे
कैसे मान लूं ?
ये मेरे सिद्धांतों
के विरुद्ध है
किन्तु वे आवाज़,
ईश्वर और पवन को
अपने सिद्धांतों के
विरुद्ध जाकर मान लेते हैं
बिना किसी तर्क के
मान लेते हैं
संतोष होता है कि इस
तर्क के युग में भी
कुछ लोगों की विश्वसनीयता
तर्क से परे
भी बनी हुई है .
पर अगले ही क्षण
नितांत तर्क वाले
जब कभी मान जाते हैं
किसी बात को
बिना तर्क के ,सच
बताऊँ-
मजा ख़त्म कर देते
हैं या
कभी-कभी मजे का कत्ल
पर अच्छा करते हैं
हमारी उस सच्ची
अवधारणा की
संस्कृति को देते
हैं सम्मान
कि वो भी चीजें होती
हैं ,
सच होती हैं, जो
हमें दिखाई नहीं देती
जिनका कोई स्थूल रूप
नहीं होता
फिर भी दुनिया को
बनाने और
मिटाने का रखती हैं
माद्दा.
जो शक्तियां हमें
दिखाई देती हैं
उनसे भी शक्तिशाली,सक्षम,प्रभुता
सम्पन्न
वो हैं जो हमें
दिखाई नहीं देते किन्तु
जीवन के प्रत्येक
क्षण में शामिल होते हैं
जैसे ईश्वर पवन और
ध्वनि
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें