बदला मिज़ाजे वक़्त हम
क्या से क्या हुए
जो सर झुकाते थे वो
अब आखें दिखाते हैं
जिनको सिखायी हमने
उजालों की बंदगी
वे हमको ही
काली-काली रातें दिखाते हैं
वर्षों पकड़ कर
उंगलियाँ जो साथ चले थे
वो हमको ही आके गलत राहें दिखाते है
जिनको सिखाये दाँव
पेंच जिन्दगी के हम
वो मोड़ कर बाज़ू हमें
बाहें दिखाते हैं
जब से अकेला वक़्त
हमें छोड़ गया है
सब लोग अक्ल वाली
किताबें दिखाते हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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