लाख करे कोई यत्न जो
होना है वो होता है
पर असफल होने पर भी
संतोष तो होता है
मित्र और संबंधी
देते सांत्वना का दान
केवल स्व का
स्वालंबन ही मित्र तो होता है
संकट में अपने
संबंधी ही उसकाते हैं
आशंका अनिष्ट की
कइयो कथा सुनाते हैं
दिखलाते हैं भय केवल
शुभचिंतक बन करके
ऐसे में निज कर्म
धर्म ही साथ निभाते हैं
संकट में पत्नी से
अधिक अपेक्षा रहती है
भय खाती है अधिक वही
भयभीत भी करती है
वो दुर्बल पड़े तो
संभव नहीं संकट से बचना
ऐसे में निज से
सफलता परे ही रहती है
ऐसे में होना जो सफल
विश्वास रखो निज पर
पत्नी में उत्साह
भरो पर प्रेम सहज होकर
जीवन संगिनी का
तुमको विश्वास जो मिल पाया
फिर तो विजय मिलेगी
तुमको सारे संकट पर
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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