यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 7 जुलाई 2018

पत्र तुम्हारे आज













































 पत्र तुम्हारे आज मिले हमें जब हमें दोपहर
आह्लादित और मुदित रहे हम कई प्रहर
कम्पित कर से पढ़े खोल के पाती ज्यों
स्वर सजने से पहले हो गये मौन अधर

तुम जो आयी थी चला मधुमास आया था
बे-सुरे  ने सुर में पहला गीत गाया था
तुम न थी नारी सहज तुम विमला थी
शब्द में है ब्रम्ह ये परिचय कराया था

मैं था दूषित प्रेम ने पावन बनाया
जीते हैं कैसे सहज जीवन सिखाया
जो भी मेरा नाम या सम्मान है
ये तुम्हारे प्रेम ने मुझको बनाया

तुम हो पावन सरयू जैसी और रहोगी
अग्नि से भी शुद्ध तुम सीता रहोगी
सौंप दूँगा सरयू को सारे रहस्य
होगी ना अपवित्र अविरल ही बहोगी

कर सका ना ये तो तब अनुरक्ति कैसी
राग व् पावनता की सच्चाई कैसी
पाती स्मृति चित्र सरयू में डुबोया
कर दिया वैसा तुम्हारी चाह जैसी

तुम रहो जग में कहीं भी प्रसन्न रहना
तुम हो पावन और सदा पवित्र रहना
जो प्रसंग हमारे थे सब इति हुए हैं
प्रेम पर विश्वास कर निश्चिंत रहना  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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