मैं तुम्हारे बारे
में, अपने भाव
दुनिया को बताना
चाहता हूँ.
कई दिन, शायद सप्ताह
नहीं, महीनों हो
गये.
पर समझ नहीं पा रहा
था,
तुम्हारे बारे में क्या
लिखूँ /
लिखूँ तो शायद,
पुस्तकों की एक नयी
दुनिया बन जाये.
और मैं लिखते–लिखते बूढ़ा
हो जाऊं.
बहुत दिनों से
सोचते-सोचते,
आज शायद समझ में आ
गया है.
कि बहुत कुछ कहना हो
तो कम बोलो ;
या एकाध शब्द ही
लिखो. क्योंकि
उसके आगे पीछे का
मौन बहुत बोलता है.
इससे पहले कि
सोच-सोच कर पागल हो जाऊं
एक शब्द पकड़ में आया
है, खोजते-खोजते.
जो शायद वो सब कह
जाये, तुम्हारे बारे में !
जो मैं कहना चाहता
हूँ.
मेरे जीवन में
तुम्हारा होना,
मेरे जीवन को
‘सार्थक’ कर गया है.
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
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