आज एक तरफ निंदा है.
एक तरफ प्रशंसा
है.
और कोने में पड़ी
चुप्पी है.
सत्य को बोल तो
दुर्लभ हैं !
हाँ, आलोचना को खोज
रहा हूँ.
साहित्य और जीवन में,
दोनों जगह !
अरे हाँ, किसी को
मिले
तो बताना जरुर !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें