तुम आयी जीवन में
मूढ़ को मति आयी
प्रस्तर में नवनीत
सुकोमल गति आयी
कंकड़ जैसे शब्द पड़े थे बिखरे जो
हुए एकत्रित गीत बने
संग ध्वनि आयी
अनगढ़ अन्यमयस्क सा पड़ा
हुआ जीवन
तुमसे मिलकर गुंजित
भ्रमर हुआ ये मन
ग्रीष्म ऋतु में नीले नंगे बादल सा
तुम जो आयी सावन का
बन गया मैं घन
तुम्हरे अधरों का
स्पर्श जो मिला भाल को
किया पराजित मैं
मनोज की प्रति चाल को
बस निबन्ध सा लिखे
जा रहा था जीवन
तुम आयी तो गीत लिखे
ज्यों पुष्प थाल को
तुमसे पहले जीवन को ढोता था मैं
दिन-प्रतिदिन यूं ही
निज को खोता था मैं
अनुराग का दीप
प्रज्वलित हो गया तुम आयी
अनभिज्ञ अन्यथा
प्रेम पराग के बिन था मैं
रंगित तुमने ही मेरे जीवन को बनाया
तुमने ही मुझको
कविता से गीत बनाया
तुमने दिखलाया जीवन
के इन्द्रधनुष को
तुमने इस पाहन को
मिलकर मीत बनाया
प्रेम मिले तो शूल
सुमन बन जाता है
प्रेमी निर्जन वन
में भी इठ्लाता है
दुःख में भी अवलम्ब
प्रेम सा ना कोई
प्रेम मिले तो मरता
भी जी जाता है
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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