तुम मिली तो गीत के स्वर उभर आये
तुम जो बोली प्रीत के स्वर उभर आये
प्रेम की पुस्तक का
मेरे जब कथानक तुम हुई
दबे सब अनुराग के
स्वर उभर आये
तरूणाई की अनमनी सी
थी कथा
तुम जो आयी हो गयी
हल सब व्यथा
स्फूर्ति नव,नव
चेतना,नव रंग जीवन में भरे
हर्ष के सब सुमन
झोली में चले आये यथा
प्रेम वो जो क्षण
में शव को शिव बना सकता प्रिये
प्रेम वो जो विष को
भी अमृत बना सकता प्रिये
प्रेम के परिणाम की
दृष्टांत सच्ची मीरा हैं
प्रेम झूठे बेरे भी
प्रभु को खिला सकता प्रिये
प्रेम ने मुझ मूढ़ को
ये दृष्टि दे दी है प्रिये
लोगों ने यूँ शक्ति
से तो युद्ध जीता है प्रिये
किन्तु उर पर विजय
पाना है बिना किसी शस्त्र के
फिर तो केवल प्रेम
ही उर जीत सकता है प्रिये
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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