चौराहे
के कोने पर एक पेड़ है
मैं
रोज सुबह टहलने जाता हूं
कुछ
देर टहल कर बैठ जाता हूं
उसकी
छांव में, उसकी हंसी सुनता हूं
फिर
टहलता हूं और
थोड़ी
धूप चढ़ आने पर
थक
कर बैठ जाता हूं
उसकी
छांव में
वह
फिर हंसता है और
कहता
है बस !
इतने
ही जवान हो !
मुझे
देखो, मैं 80 वर्ष का हूं
फिर
भी खड़ा हूं तन कर
और
तुम...!
मैं एक फीकी हंसी के साथ कहता
20
चक्कर लगाया हूं पूरे
और
फिर यह धूप
इधर
मैं शहर से 2 हफ्ते बाहर था
कल
आया, टहलने गया
तो
पेड़ उदास था
वह
हंसा नहीं
मैं
भी कुछ पूछ नहीं पाया
चला
आया मौन
पर
आज उसकी उदासी खली
आखिरकार
मैंने पूछ ही लिया !
उदास
क्यों हो ?
आज
मेरी जवानी की
उड़ाओगे
नहीं हंसी ?
आज
तो मैंने दस ही
चक्कर
लगाए हैं
वह
फिर भी नहीं बोला
मैंने
सर उठा कर
उसके
चेहरे की ओर देखा
उसके
रोम-रोम मुरझाए थे
वह
से शोक में डूबा था
मैं
खड़ा हो गया और
उसे
पकड़ कर जोर से हिलाने
या
कहिए झिंझोड़ने की
व्यर्थ
कोशिश किया
मुझे
अजीब लग रहा था
कि तभी
पेड़ बोला- तुम्हें दिखाई नहीं देती ?
सामने
खड़ी मेरी मौत !
माना
कि मैं आदमी नहीं पेड़ हूं
पर
मौत से किसी नहीं लगता डर
मैंने
तुम्हें अपनी उम्र बता कर
गलती
की थी शायद
नजर
लग गई
मेरी
उम्र को किसी की
मैं
अपराध बोध से भर गया
मतलब
मेरी ही नजर लग गयी
मेरा
ह्रदय बैठ गया
मैंने
फिर साहस कर पूछा
कहां
खड़ी है तुम्हारी मौत ?
कैसे
बहकी - बहकी बातें करते हो !
मैंने
सामने दीवार पर
लिखे
नारे की ओर इशारा किया
वह
देखो, क्या लिखा है ?
“पेड़
लगाओ जीवन बचाओ”
अब
पेड़ हंसा !
मैंने
ध्यान दिया तो
उसकी
हँसी में तंज था
उसने
कहा इधर देखो
मेरे
तरफ के मेरे चार भाई
2 हफ्ते में मार दिए गए
कल
तुम आओगे तो
शायद
मुझे नहीं पाओगे
मैंने
ध्यान दिया तो
सचमुच
4 पेड़
इस
तरफ के गायब थे
दिमाग
पर जोर दिया
एक
हल्का चक्कर आ गया
रास्ते
का चौड़ीकरण हो रहा है
और विकास
में बाधा है यह पेड़
पवन
तिवारी
संवाद
– ७७१८०८०९७८
अणु
डाक –poetpawan50@gmail.com