यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 23 अक्टूबर 2022

प्रेम कोई प्रबंधन नहीं



प्रेम  कोई  प्रबंधन  नहीं

प्रेम है कोई  बंधन  नहीं

है ये संबंध  अनुराग का  

प्रेम विक्रय का है धन नहीं

 

मति की सहमति से ये पथ बने

हों समर्पण  से रिश्ते घने

सुख मिले साथ संतोष भी

किस्से हों प्रेम में सब सने

 

कोई  छोटा   कोई बड़ा

प्रेम का  हो  समादृत घड़ा

हो परस्पर  में शुभकामना

फिर हो जीवन में हीरा जड़ा

 

इस तरह  जिंदगी जो जिये

प्रेम का वो  ही अमृत पिये

शेष केवल कथानक ही तक

कहने को ये किये वो किये

 

पवन तिवारी

२२/१०/२०२२

शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

ऐसा कुछ हाल हुआ है मेरा



ऐसा   कुछ   हाल   हुआ   है  मेरा

खुद से खुद रूठ भी नहीं सकता

अब भी आशा  है किन्तु ना जानूँ

उर ये किसका   है रास्ता तकता

 

पहले  सोचूँ  कि  कैसे  रोते  सब

नहीं रुकता जो आँसू अब बहता

वैसे उठाता हुआ सा  दिखता हूँ

किन्तु अंदर से सारा कुछ ढहता

 

युद्ध  लम्बा  था  कई   वर्ष  चला

लड़ाई खुद से थी किससे कहता

अति     सर्वत्र     वर्ज्यते    कहते

सीमा के पार भी कितना सहता

 

मुझको प्रतिरोध  ने बचा रखा

सारा दुःख,त्रास,छल को झेल गया

मौत भी  प्राण बचाकर भागी

इस तरह जान पे मैं खेल गया

 

पवन तिवारी

२०/१०/२०२२  

तेरे द्वारे पे हम भी आये थे



तेरे  द्वारे  पे  हम  भी  आये  थे

तेरी खुशियों में जमके गाये थे

वक़्त ने मुझसे मुख था क्या मोड़ा

वर्षों खुद  को  अकेले पाए थे

 

गिरते उठते  थे  और चलते थे

अच्छे दिन याद करके खलते थे

ऐसा लगता था हजारों अपने

सोचते  और  हाथ  मलते  थे

 

सारी उम्मीद  रोके जाती रही

सफेदी तेज गति से आती रही

मुझको सब  भूलने ही वाले थे

तभी धुन मेरी कोई गाती रही

 

चर्चा  गीतों  की  मेरे  होने लगी

आगे-पीछे की पीढ़ी खोने लगी

पता चला कि उस पवन की है

एक बुढ़िया थी सुन के रोने लगी

 

माँ का बेटा  जो  लौट आया था

सबके अधरों पे वो ही छाया था

साधना  सिद्ध  हो गयी उसकी

सारे  जग  का  दुलार  पाया था

 

पवन तिवारी

११/१०/२०२२   

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

अकेले थे अकेलापन नहीं था



अकेले थे  अकेलापन  नहीं था

उल्लसित हो हर्ष नाचा यहीं था

अकेलेपन ने  घेरा था जहां पर

हाँ, मगर भीड़ का मेला वहीं था

 

कहना कई बार चाहता था मगर

डरते - डरते चला था ऐसी डगर

मौत  पीछे  थी ज़ि न्दगी आगे

भागता कितना भागता भी अगर

 

ज़िन्दगी  युद्ध  एक चारा था

मौत को कसके हमने मारा था

तिलमिला के वो हटी थी पीछे

अपना भी दांव  लगा सारा था

 

इस तरह हमने  जिंदगी जीती

मौत भी घूँट  जहर  के पीती

एक दिन आयी चल पडा हंस के

इससे पहले जो खूब थी बीती

 

पवन तिवारी

१०/१०/२०२२      

बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

आज-कल अर्थहीन लगता हूँ



आज - कल अर्थहीन लगता हूँ

जैसे खुद से ही रोज भागता हूँ

जब से अस्वस्थ तन हुआ ज्यादा

सोते-सोते भी लगता जागता हूँ

 

सारे  चहरे  पराये  लगते  हैं

अपने ही लोग जैसे ठगते हैं

वे बनाते हैं हम भी बनाते हैं

झूठी बातों में उनके पगते हैं

 

हाथ पे हाथ धरे फिरते हैं

अपने अंदर ही जैसे गिरते हैं

सारा कुछ ख़त्म हुआ सा लगता

जैसे दुश्वारियों से घिरते हैं

 

तन जो सुधरा तो रोशनी आई

फिर से हिय ने है ज़िन्दगी पाई

अब तो मन भी है मुस्करा देता

गैर  भी  लगते  जैसे   हैं  भाई

 

रुग्णता  का  बुरा  ही खेला है

आप  ने  हमने  सबने झेला है

कच्चे मन को संभाल लेना तुम

आगे फिर जिंदगी का मेला है

 

 

पवन तिवारी

१०/१०/२०२२  

पानी पानी पानी



पानी    पानी    पानी

बरखा जल की रानी

आओ तुम्हें  सुनाऊँ

इसकी एक  कहानी

 

पानी बड़ा ही दानी

कहती   मेरी नानी

धरा की इसके कारण

रहती  चूनर धानी

 

प्यास बुझाता पानी

फसल उगाता पानी

पानी  बिना  अधूरी

सबकी ही जिंदगानी

 

पोखर ताल तलैया

सागर सरयू  मैया

सबका एक है मालिक

अपना  पानी भैया

 

पवन तिवारी

१७/०९/२०२२   

 


जो सफल चाहने वाले उसके बहुत



जो सफल  चाहने वाले उसके बहुत

पर सफलता के होते भी दुश्मन बहुत

कुछ सफल लोगों के हिय से पूछो जरा

त्रास छल के भी किस्से मिलेंगे बहुत

 

दास तुलसी की जीवन कहानी पढ़ो

या निराला की जलती जवानी पढ़ो

ये अमर लोग जीवन में मरते रहे

या कि पद्मावती झाँसी रानी पढ़ो

 

यूँ तो दृष्टांत की कुछ कमी है नहीं

ज़िन्दगी कैसी  हो पर थमी है नहीं

बोस,आज़ाद,बिस्मिल,भगत  याद हैं

उनकी आँखों में आयी नमी है नहीं

 

हँसते - हँसते यहाँ मरने वाले रहे

देश की आन को काला पानी सहे

कितने कोड़े पड़े ज़ुल्म कितने हुए

पर न रोये न दुखड़ा किसी से कहे

 

हो सफलता किसी की भी जैसी भी हो

अपनी हो राष्ट्र की या कि कैसी भी हो

उसमें अपनों से ज्यादा हों दुश्मन भी खुश

कुछ सफलता तो जीवन में ऐसी भी हो

 

पवन तिवारी

०८/०९/२०२२  

 

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

लोग शहद से शब्द बोल के ज़हर पिलाते हैं

लोग शहद से शब्द बोल के ज़हर पिलाते हैं

मरने पर रोने का नाटक करके गाते हैं

ऐसे ही बहुतेरे जग में भले बने फिरते

शातिर लोग भी हँसकर अक्सर हाथ मिलाते हैं

 

सच के पथ पर कठिनाई क्या घाव भी पाते हैं

ऐसे में कुछ दया  दिखाने  धूर्त  भी  आते हैं

चेहरे से दिखते सज्जन हैं अन्दर से तो पूरे छलिया

लूटने से  पहले  चिकनी  चुपड़ी  बतियाते  हैं

 

हर पीला सोना नहीं होता हर चमकीला हीरा ना

बड़े लोग बच्चों को  कहकर यूँ समझाते हैं

चमक  दमक से लोगों के नजदीकी नाते हैं

किन्तु उन्हीं के अन्दर काली- काली राते हैं

 

लच्छेदार व झूठे ही लोगों को लुभाते हैं

जाने क्या जादू करते लोगों को भाते हैं

जो इनके जादू आकर्षण से से बाख जाते हैं

वे जीवन में हो विलम्ब पर समृद्धि पाते हैं

 

पवन तिवारी

०७/०९/२०२२     

साथी के आँगन में देखा हूँ जब से



साथी  के  आँगन  में  देखा  हूँ जब से

अन्तःकरण मेरा व्याकुल थोड़ा तब से

तुमको देखा पुनः ह्रदय  तो मुस्काया

तुम्हें ही सोचा तुम में  ही  डूबा डब से

 

निर्हेतुक मैं खिंचा आ रहा तब से हूँ

अब कहने का ना कोई इसका अर्थ है

रूप निरूपम ऐसा है कि क्या बोलें

करूँ निरूपण कितना क्या सब व्यर्थ है

 

वांछा रहती और लिखूँ कुछ और है

किन्तु लेखनी घुमा घुमा कर तुम्हें लिखे

वर्णमाल में जितने सुंदर अक्षर हैं

मिल करके वे सारे तुम में शब्द दिखें

 

तुम बिन भी है महत्त्वपूर्ण ये जान के भी

ह्रदय हराकर मुझे तुम्हीं पर लुटता है

समारोह  में  ऊँचे हैं  व्यक्तित्व  मगर

बिन  तुम्हरे  उर धीमे - धीमे घुटता है

 

मन को तुमसे भटकाना चाहा बहुधा

किन्तु ध्यान केन्द्रित है तुम पर ही हिय का

यही प्रेम है या कह लो अनुरक्ति इसे

बिना तुम्हारे जीना मुश्किल इस जिय का

 

पवन तिवारी

०७/०९/२०२२