प्रेम कोई प्रबंधन
नहीं
प्रेम है कोई बंधन नहीं
है ये संबंध अनुराग का
प्रेम विक्रय का है धन नहीं
मति की सहमति से ये पथ बने
हों समर्पण से रिश्ते घने
सुख मिले साथ संतोष भी
किस्से हों प्रेम में सब
सने
कोई छोटा न कोई बड़ा
प्रेम का हो समादृत घड़ा
हो परस्पर में शुभकामना
फिर हो जीवन में हीरा जड़ा
इस तरह जिंदगी जो जिये
प्रेम का वो ही अमृत पिये
शेष केवल कथानक ही तक
कहने को ये किये वो किये
पवन तिवारी
२२/१०/२०२२