लोग शहद से शब्द बोल के ज़हर
पिलाते हैं
मरने पर रोने का नाटक करके
गाते हैं
ऐसे ही बहुतेरे जग में भले
बने फिरते
शातिर लोग भी हँसकर अक्सर
हाथ मिलाते हैं
सच के पथ पर कठिनाई क्या
घाव भी पाते हैं
ऐसे में कुछ दया दिखाने धूर्त
भी आते हैं
चेहरे से दिखते सज्जन हैं अन्दर
से तो पूरे छलिया
लूटने से पहले चिकनी चुपड़ी बतियाते हैं
हर पीला सोना नहीं होता हर
चमकीला हीरा ना
बड़े लोग बच्चों को कहकर यूँ समझाते हैं
चमक दमक से लोगों के नजदीकी नाते हैं
किन्तु उन्हीं के अन्दर
काली- काली राते हैं
लच्छेदार व झूठे ही लोगों
को लुभाते हैं
जाने क्या जादू करते लोगों
को भाते हैं
जो इनके जादू आकर्षण से से
बाख जाते हैं
वे जीवन में हो विलम्ब पर
समृद्धि पाते हैं
पवन तिवारी
०७/०९/२०२२
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