अकेले थे अकेलापन नहीं था
उल्लसित हो हर्ष नाचा यहीं
था
अकेलेपन ने घेरा था जहां पर
हाँ, मगर भीड़ का मेला वहीं
था
कहना कई बार चाहता था मगर
डरते - डरते चला था ऐसी डगर
मौत पीछे थी
ज़ि न्दगी आगे
भागता कितना भागता भी अगर
ज़िन्दगी युद्ध एक
चारा था
मौत को कसके हमने मारा था
तिलमिला के वो हटी थी पीछे
अपना भी दांव लगा सारा था
इस तरह हमने जिंदगी जीती
मौत भी घूँट जहर के
पीती
एक दिन आयी चल पडा हंस के
इससे पहले जो खूब थी बीती
पवन तिवारी
बहुत खूब प्रिय पवन जी! मौत को कसकर मारकर जीवटता से जीने का ये अंदाज बहुत प्रेरक है।👌👌👌👌👌👌👌👌🙂
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