यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

अकेले थे अकेलापन नहीं था



अकेले थे  अकेलापन  नहीं था

उल्लसित हो हर्ष नाचा यहीं था

अकेलेपन ने  घेरा था जहां पर

हाँ, मगर भीड़ का मेला वहीं था

 

कहना कई बार चाहता था मगर

डरते - डरते चला था ऐसी डगर

मौत  पीछे  थी ज़ि न्दगी आगे

भागता कितना भागता भी अगर

 

ज़िन्दगी  युद्ध  एक चारा था

मौत को कसके हमने मारा था

तिलमिला के वो हटी थी पीछे

अपना भी दांव  लगा सारा था

 

इस तरह हमने  जिंदगी जीती

मौत भी घूँट  जहर  के पीती

एक दिन आयी चल पडा हंस के

इससे पहले जो खूब थी बीती

 

पवन तिवारी

१०/१०/२०२२      

1 टिप्पणी:

  1. बहुत खूब प्रिय पवन जी! मौत को कसकर मारकर जीवटता से जीने का ये अंदाज बहुत प्रेरक है।👌👌👌👌👌👌👌👌🙂

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