यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 14 मई 2020

है दोस्त पर दुश्मनी का ये रुख है


है दोस्त पर दुश्मनी का ये रुख है
मेरे आंसुओं पर खड़ा तेरा सुख है
जो मेरा रहा  ना  तेरा होगा कैसे
समझ ना सका खेल बस इसका दुःख है

फरेबों  ने  भी  दोस्ती  को है मारा
सब कुछ रहा कल तलक जो हमारा
गलत  फहमियाँ  उसने  ऐसे पिरोई
अलग हो गया सब  हमारा  तुम्हारा

जवानी की चाहत भी होती है अंधी
इसकी हवस होती है सबसे  गन्दी
करें राम जी होश आ जाए हमको
चालाकियाँ सारी  हो  जाएँ  नंगी

कहने से पहले जो  सोचा करोगे
अपनों पे  अपना भरोसा  करोगे
बिगड़ती हुई बात बन जायेगी ही
आपस में  मन को परोसा करोगे

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

कविता का बीज


आज सबसे महत्वपूर्ण है कविता
क्योंकि सबसे खतरे में है कविता
क्योंकि कविता के नाम पर
सबसे अधिक षडयंत्र
रच रहे हैं शब्द !
जिनसे वह लेती है जन्म,
वही उसके अपने
अबसे अधिक महत्वपूर्ण और
सबसे अधिक शक्तिशाली
सबसे अधिक नैतिक और
सबसे अच्छे को ही सबसे अधिक
खतरा होता है और
कविता में है वह सब !
इसलिए कविता के बहुत से
बहुरूपिये भी बढ़ते जा रहे हैं किन्तु
कविता में कविता से
अधिक महत्वपूर्ण हैं गीत !
वह शब्दों के बिना भी स्मृतियों में
जीवन की संस्कृति व संगीत के साथ
ह्रदय और कंठ में
रह सकता है हजारों वर्षों तक
उसकी ह्त्या है सबसे कठिन
उसके हैं अनेक स्वरुप
विवाह के गीत, पूजा के गीत
उत्सव के गीत, जन्म के गीत
और दुःख के गीत परन्तु
उनमें भी सबसे अलग श्रम के गीत
जो पसीने के साथ सुर, लय
और ताल मिलाते हैं.
सबसे अधिक खतरे में है.
कविता को बचाना है तो
बचाना होगा गीत को, क्योंकि
कविता का बीज है गीत .

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

बुधवार, 13 मई 2020

फिर से प्यार


मैं फिर से प्यार करूँगा जी
मैं प्यार बिना  मर जाऊँगा
आव़ाज भी  धँसती जाती है
मैं प्यार  बिना क्या गाऊँगा

मैंने तो  सच्चा  प्रेम  किया
किस बात से फिर पछ्ताऊँगा
मैं प्रेम पथिक  विश्वास मुझे
मैं प्रेम को फिर  से  पाऊँगा

उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या
सुन प्रेम  मैं  मिलने  आऊँगा
मेरी   झोली  में  प्रेम  सुमन
मैं   उसे    चढ़ाने   लाऊँगा

कुछ करें घृणा तो  करते रहें
अपनी  नज़रों  को  भाऊंगा
तुझसे  मिलने    प्रेम मेरे
अंतिम  साँसों  तक  धाऊंगा

जग छोड़े मुझे तो छोड़ ही दे
मैं प्रेम को  प्रति पल चाहूँगा
असफल प्रेमी  ही होते अमर
मर के भी  अमरता  पाऊँगा  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुण और महत्व




कई बार अच्छी बातें 
सुनने में अच्छी नहीं लगती
कई बार अच्छी कवितायेँ भी 
पढ़ने में अच्छी नहीं लगती
और अच्छे लोग अक्सर 
अच्छे नहीं लगते
सबसे लम्बी दूरी चलने वाली 
रेल भी देखने में अच्छी नहीं लगती
सच भी सुनने में कानों को
बहुत अच्छा स्वाद नहीं देता
नीम और करेला भी 
अच्छे नहीं लगते 
फिर भी उनका गुण और 
महत्व नहीं होता कम


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

गाँव भारत नगर इंडिया



एक बात जो नहीं लगेगी अच्छी
खासकर, बहुत-पढ़े लिखे लोगों को
जिन्होंने दुनिया देखी है या दावा करते हैं
जो बाकी दुनिया सा भारत को चाहते हैं बनाना
विदेशों में शिक्षा और नौकरी वालों और
सबसे खराब लगेगी उन कवियों और लेखकों को
जो अपनी भारतीय भाषाओँ से अधिक
विदेशी रचनाकारों को पढ़ते और दुहाई देते हैं
ऐसे लोग ही गाँवों को उजाड़ रहे हैं.
कर रहे हैं उसकी हत्या.
गाँव नगरों में खोज रहा है अपना अस्तित्व
जैसे नदी होना चाहती है समुद्र में विलीन
किन्तु गाँव नदी नहीं हैं.
गाँव से उबाये जा रहे हैं लोग
उन्हें यही पढ़े लिखे लोग भड़का रहे हैं
हर व्यक्ति अपने आप में एक संस्कृति होता है
जब आप जाते हैं उसके या उसकी रचना धर्मिता के पास
तो वह अपने और अपनी रचनाओं के साथ
देता है अपनी पूरी संस्कृति
और हम उसे फैलाते हैं अपने समाज में
कभी न खत्म होने वाले विषाणु की तरह.
अब यह नगरों से होकर गाँव तक गया है पहुँच
अब भारत का बचना दुष्कर लग रहा है.
क्योंकि इंडिया अपने खतरनाक विषाणु 
भारत लेकर पहुँच गया है.
दुनिया को, उसके साहित्य को, समझने के नाम पर
गाँवों की संस्कृति को नष्ट कर रहे लोगों से बचना है तो 
मिलो फिर से माटी और गोबर से, नीम से, हल से,
देसी गाय से, मिट्टी के चूल्हे और उनके रिश्तेदारों से
सरपंच और मुखिया से, बाऊ जी और माई से
रेणु से, प्रेमचन्द से, परिवार और लोकाचार से
और हाँ, अपनी बोली और परम्परा से भी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com   

धोखा




मित्र से, भाई से, पिता से, बहन से
मिला धोखा, आप की आँखों में
लाता है आँसू, करता है विचलित
फिर भी कुछ समय बाद
बढ़ जाते हैं उससे आगे
किन्तु अपनी स्त्री से मिला धोखा
आप को करता है विवश
अंदर से रोने को
जिसे कोई नहीं देख पाता
स्वयं के सिवा,
नहीं कर पाते किसी से साझा
यह आप को मार देती है या
रह जाते हैं ज़िंदा लाश सा
किन्तु इससे बच सको तो
महान होने की प्रबल संभावना
हो जाती है खड़ी, चाहो तो
सत्यापन के लिए झाँक सकते हो
इतिहास की खिड़की में

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

औरत



जो तुम्हारे कपड़े धो देती है
जो तुम्हें दे देती है बना कर चाय
जो तुम्हें पकाकर भोजन परोस देती है.
वो जो कर देती है इस्तिरी तुम्हारे कपड़े
वो औरत जैसी कोई और है
यह तो तुम स्वयं भी या
कर सकती है कोई नौकरानी

जो तुम्हारे दुखों को सोख ले
जो तुम्हें दे अनपेक्षित खुशियाँ
जो करे तुम्हें विपरीत परिस्थितियों में प्रेरित
जिसके होने से तुम तुम हो सको निर्भय
जिसके होने से मिले तुम्हें सुकून
जिसके होने से तुम देख सको
असम्भव को संभव करने के सपने
जिसकी गोद में तुम्हारी चिंताएं
हो जायें छूमंतर
जो तुममें खिलाये प्रेम के पुष्प
जिसका प्रेम दे खुशियों का शिखर
जो तुम्हें दे स्थिरता
जो तुम्हें दिखाए तुम्हारा लक्ष्य
जो तुममें जगाये दायित्व का बोध
जो तुम्हें बनाये फलदार वृक्ष
जो तुम्हें बनाए एक सम्पूर्ण मनुष्य
और जिसके साथ होने पर
कर सको स्वयं पर गर्व
वही औरत है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

स्वतंत्र



 पता नहीं तुम ध्यान भी देते हो या
यूं ही जब तब स्वतंत्रता का गान
करते रहते हो,
बाकी तो दुखी और परेशान ही रहते हो
स्व और तंत्र ये दो शब्द मिलकर बनाते हैं
हमारी जिन्दगी को हमारे लिए
व्यवस्थित और अनुकूल
किन्तु क्या यह सच है ?
अपने बनाए हुए तन्त्र में जीना या
सुनना लगता है अच्छा
इसी अच्छे लगने के भाव के कारण
कभी कभी तुम गाते हो और बाकी समय
अपने दुखों में जाते हो डूब !
क्या सचमुच तुमने बनाये हैं ये तन्त्र
यदि हाँ, तो तुम दुखी क्यों रहते हो ?
क्या तुम्हारा दुःख ये है कि
तुम्हारे नाम की मोहर भर लगा दी गयी है
बिना तुमसे कोई सलाह किये
स्वतंत्र के दस्तावेज पर !


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

शनिवार, 9 मई 2020

उत्तर



 जब तुम जोर देकर कहते हो
मेरा विश्वास करो !
मुझे सुनते क्यों नहीं
मेरी बात ध्यान से सुनो
मैं सच कह रहा हूँ
कहते हुये खीझ जाते हो
कभी शांत हो खुद से करना संवाद
क्या तुम दूसरों पर करते हो भरोसा
कभी दूसरों को भी सुनते हो चुपचाप ध्यान से
तब तुम्हें पता चलेगा कि
तुम्हारे इन बातों का उत्तर
तुम्हारे अंदर ही है. 


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

गिरना अच्छा लगता है


वो एक आम लड़की
सहमी, सपनों से अंजान
जिसे बनाया उसने अपनी औरत
दिखाए सपने, दिया असीमित प्यार
जिसके लिए छोड़ दिए
अपने सभी रक्त सम्बन्धों की दुनिया
और एक दिन अचानक पता चला कि
उस औरत ने उसे छोड़ दिया है
अब वह किसी और के साथ सोती है
उसने उस औरत से पूछा –
कि उसने उसके साथ ऐसा क्यों किया
औरत ने तपाक से कहा-
मुझे उसके साथ सोना अच्छा लगा.
इसके बाद वह चुप हो गया यूँ
 जैसे कट गयी हो उसकी जुबान
महीनों घर के सबसे छोटे कमरे के कोने में
डरे हुए प्रताड़ित गूँगे की तरह पड़ा रहा
उसकी बड़ी हुई दाढ़ी और
चेहरे पर पर पसरी पीड़ा
माहौल को डरावना बना रही थी
वह अपनी नज़रों में गिर गया था
 उसे आती थी खुद पर शर्म
वह खुद को दुनिया से छुपाकर
चाहता था रखना  जैसे-
उसने किया हो कितना घृणित अपराध
जिस प्रेम पर था उसे गर्व और
स्वयं से अधिक विश्वास
वो सब हो गया था धराशायी
अब उसका विश्वास और गर्व
मिथ्या साबित हो चुका था.
उसने एक दिन कोठरी से निकल कर
उस औरत से फिर से पूछा था-
वही एक ही प्रश्न लगातार कई बार
कि मुझसे क्या भूल हुई ?
औरत ने कहा कोई भूल नहीं
बस! वह अच्छा लगा. इतना सुनकर
उसके घुटने खुद मुड़ गये थे
और वह फर्श पर गिर पड़ा था.
अचानक उसके चेहरे के सामने
उन सभी औरतों के चेहरे घूर्णन करने लगे
जो उसे अच्छी लगी थी या
जिन्हें वह अच्छा लगा था
किन्तु वह उनके साथ नहीं सोया था
जब भी उसे कोई अच्छी लगती तो वह
अपनी औरत को याद करता था और
वापस घर लौट आता था
इसकी औरत को ऐसा क्यों नहीं लगा
वह उस छोटे कमरे में कई दिनों तक
बिना कुछ खाये पिये सोचता रहा
उसने उन औरतों के साथ न सोकर
स्वयं के साथ छल किया.
महीनों कोठारी में रहने के बाद
उसने किया निश्चित
अच्छी लगने वाली औरतों के साथ
बिताएगा रात
कुछ सालों बात अचानक एक दिन
वह एक औरत के साथ
अस्त व्यस्त कपड़ों में पड़ा था कि
तभी एक औरत अंदर आयी और
उसे देखकर बोली – तुम इतने गिर गये.
वह हंसकर बोला – तुमने ही तो सिखाया
अब गिरना अच्छा लगता है और
एक भयावह सन्नाटा वातावरण में फ़ैल गया


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८