यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 13 मई 2020

गाँव भारत नगर इंडिया



एक बात जो नहीं लगेगी अच्छी
खासकर, बहुत-पढ़े लिखे लोगों को
जिन्होंने दुनिया देखी है या दावा करते हैं
जो बाकी दुनिया सा भारत को चाहते हैं बनाना
विदेशों में शिक्षा और नौकरी वालों और
सबसे खराब लगेगी उन कवियों और लेखकों को
जो अपनी भारतीय भाषाओँ से अधिक
विदेशी रचनाकारों को पढ़ते और दुहाई देते हैं
ऐसे लोग ही गाँवों को उजाड़ रहे हैं.
कर रहे हैं उसकी हत्या.
गाँव नगरों में खोज रहा है अपना अस्तित्व
जैसे नदी होना चाहती है समुद्र में विलीन
किन्तु गाँव नदी नहीं हैं.
गाँव से उबाये जा रहे हैं लोग
उन्हें यही पढ़े लिखे लोग भड़का रहे हैं
हर व्यक्ति अपने आप में एक संस्कृति होता है
जब आप जाते हैं उसके या उसकी रचना धर्मिता के पास
तो वह अपने और अपनी रचनाओं के साथ
देता है अपनी पूरी संस्कृति
और हम उसे फैलाते हैं अपने समाज में
कभी न खत्म होने वाले विषाणु की तरह.
अब यह नगरों से होकर गाँव तक गया है पहुँच
अब भारत का बचना दुष्कर लग रहा है.
क्योंकि इंडिया अपने खतरनाक विषाणु 
भारत लेकर पहुँच गया है.
दुनिया को, उसके साहित्य को, समझने के नाम पर
गाँवों की संस्कृति को नष्ट कर रहे लोगों से बचना है तो 
मिलो फिर से माटी और गोबर से, नीम से, हल से,
देसी गाय से, मिट्टी के चूल्हे और उनके रिश्तेदारों से
सरपंच और मुखिया से, बाऊ जी और माई से
रेणु से, प्रेमचन्द से, परिवार और लोकाचार से
और हाँ, अपनी बोली और परम्परा से भी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com   

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