यूं ही जब तब
स्वतंत्रता का गान
करते रहते हो,
बाकी तो दुखी और
परेशान ही रहते हो
स्व और तंत्र ये दो
शब्द मिलकर बनाते हैं
हमारी जिन्दगी को
हमारे लिए
व्यवस्थित और अनुकूल
किन्तु क्या यह सच
है ?
अपने बनाए हुए तन्त्र
में जीना या
सुनना लगता है अच्छा
इसी अच्छे लगने के
भाव के कारण
कभी कभी तुम गाते हो
और बाकी समय
अपने दुखों में जाते
हो डूब !
क्या सचमुच तुमने
बनाये हैं ये तन्त्र
यदि हाँ, तो तुम
दुखी क्यों रहते हो ?
क्या तुम्हारा दुःख
ये है कि
तुम्हारे नाम की
मोहर भर लगा दी गयी है
बिना तुमसे कोई सलाह
किये
स्वतंत्र के
दस्तावेज पर !
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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