है दोस्त पर दुश्मनी
का ये रुख है
मेरे आंसुओं पर खड़ा
तेरा सुख है
जो मेरा रहा ना तेरा
होगा कैसे
समझ ना सका खेल बस
इसका दुःख है
फरेबों ने भी दोस्ती को
है मारा
सब कुछ रहा कल तलक
जो हमारा
गलत फहमियाँ उसने ऐसे पिरोई
अलग हो गया सब हमारा तुम्हारा
जवानी की चाहत भी
होती है अंधी
इसकी हवस होती है
सबसे गन्दी
करें राम जी होश आ
जाए हमको
चालाकियाँ सारी हो जाएँ
नंगी
कहने से पहले जो सोचा करोगे
अपनों पे अपना भरोसा करोगे
बिगड़ती हुई बात बन
जायेगी ही
आपस में मन को परोसा करोगे
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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