यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 6 जुलाई 2022

जब तेरे प्यार से गुजरते हैं

जब  तेरे  प्यार  से  गुजरते  हैं

तब  जरा और ही   संवरते  हैं

प्यार का सिलसिला जो चलता है

रोज दर  रोज  हम निखरते हैं

 

ये  तेरा   प्यार   जैसे   उबटन  है

फिर से आया कि  जैसे  बचपन है

पहले  उलझन  तनाव    जैसा था

अब तो हर्षित खिला खिला मन है

 

लगता  है  हम  नसीब  वाले  हैं

कट  गये  ज़िन्दगी  के  जाले  हैं

तेरे  मिलने  से  ऐसा  लगता है

बंद  किस्मत  के  खुले  ताले  हैं

 

प्यार  को  यूँ  बनाये  रखना है

प्रेम  के  संग  -  संग  बहना  है

अच्छे जीवन की प्रबल औषधि ये

इससे  अच्छा  न कोई गहना है

 

पवन तिवारी

२४/०१/२०२२

माना तालाब ज़रा बूढ़े हुए

माना   तालाब  ज़रा  बूढ़े  हुए

जल के  बूढ़ों  को ज़रा जीने दो

माना तुम पीते नहीं जल इनका

विहग, मवेशियों  को  पीने  दो

 

धरा  की  गोद   ठंडी  रखते हैं

खेतों  को   नेह   इन्हें  देने  दो

ये  तो   सच्चे  हमारे  पुरखे  हैं

इन्हें भी  साँस खुल के लेने दो

 

ये तो  पानी  से  प्रेम करते है

पानी का पानी ज़रा रहने दो

ज़िंदगी पानी बिना है ही नहीं

है  जहाँ  पानी  उसे बहने दो  

 

ताल, सरिता,  कुएँ, धरोहर  हैं

इनकी  रक्षा से पुण्य मिलता है

जल को हम स्वच्छ सुरक्षित रखें

इनसे हम क्या जगत ही खिलता है

 

पवन तिवारी

२०/०१/२०२२

प्रेम वृक्षों से

प्रेम अपनों से  अगर  करते हो

प्रेम वृक्षों  से   जताना   होगा

चाहते हो सभी की खुशहाली

वृक्ष  प्रतिवर्ष  लगाना  होगा

 

चाहते  खेत  लहलहाते  रहें

सरोवरों  को  बचाना होगा

इसके ख़ातिर समाज को मिलकर

कंधे से कंधा  मिलाना होगा

 

जरूरतों को समझकर हमको

हो सहज  पाँव बढ़ाना होगा

सुविधा की लत बड़ी ही घातक है

 ऐसी आदत को घटाना होगा

 

चाहिए  शांति  और  समृद्धि  तो

दिल को प्रकृति से मिलाना होगा

कर सके इसका अगर  आदर  तो

हम क्या ख़ुशहाल  ज़माना होगा

 

पवन तिवारी

१७/०१/२०२२  

जाने कितने गुबार

जाने  कितने  गुबार  हैं दिल में

उनका उपचार करोगे क्या तुम

जिसने तुमको कभी उबारा था

उसका  आभार करोगे क्या तुम

 

सच के पथ से नहीं  भटकना है

इसका सम्मान करोगे क्या तुम

जल्दबाजी  से  हानि भी होती

प्रतीक्षा  अल्प  करोगे क्या तुम

 

मुझको  सम्मान  देते  हो माना

माँ का सम्मान करोगे क्या तुम

ख़ुशी पे सब ही मरते मिटते हैं

दर्द से  प्या र करोगे  क्या तुम

 

तुम गरीबों को  उबार के थोड़ा

खुद पे एहसान करोगे क्या तुम

वक़्त आने पे साथियों के लिए

खुद को कुर्बान करोगे क्या तुम

 

पवन तिवारी

१५/०१/२०२२

 

सोमवार, 4 जुलाई 2022

अकेलापन भी भाता है

अकेलापन   भी   भाता  है

किन्त्तु  लम्बा  तो  काटे  है 

घुमड़  आती  है  स्मृतियाँ

कि  बैठे   उनको  छांटे  है

 

कभी चेहरा है खिल जाता

उदासी   भी   कभी    घेरे 

कि दुःख सुख मित्र याद आते

समय  के  चल  रहे   फेरे

 

कभी  कोई  याद  आता है

कभी  माँ  याद   आती  है

अकेले  में  तो   दुविधाओं

की लहरें  आती  जाती हैं

 

सभी सुविधाएँ हों भी तो

वीरानी खल ही जाती है

सजग रहना भटकना भी

अचानक  से   डराती  है

 

 

अकेले    देर    तक    देखो

कभी  तुम  चुप नहीं रहना

कि मन की मार को चुपचाप

बिलकुल  भी  नहीं सहना

 

कि ख़ुद से बात करना और

हँस  कर   गुनगुनाना  तुम

कोई  सुनता  नहीं  तुमको

दीवारों   को  सुनाना तुम

 

तुम्हारी      जिन्दगी    में

हल्की–हल्की मौज आएगी

अकेलापन  भी    हारेगा

ज़िन्दगी    जीत   जायेगी

 

पवन तिवारी

१३/०१/२०२२  

जीवन का तोय सूखता है

जीवन  का   तोय   सूखता  है

अब हिय  से  कौन  पूछता  है

सब  अपनी  आपा  धापी  में

धन पर ही  सकल रीझता है

 

अब  कौन  लोक  से डरता है

जैसे  भी  हो   बस  भरता है

अब  सम्बंधों  का  निर्धारण

बहुधा बस द्रव्य ही करता है

 

देवों  से   बढ़कर  द्रव्य  हुआ

कौशल्या का  ज्यों हव्य हुआ

इसका महात्म्य कुछ ऐसा है

प्रति कर्ण का पावन श्रव्य हुआ

 

माना  कि  ना  यह  सत्य हुआ

पर यह तो सच यह तथ्य हुआ

निर्णय  तो  तथ्यों    से   होते

सो निष्फल सच का कथ्य हुआ

 

पवन तिवारी 

०५/०१/२०२२    

सिखलाया क्या बुरे वक़्त ने

सिखलाया क्या  बुरे वक़्त ने

कैसे प्रभु  को  पाया  भक्त ने

दुःख की जो रेल  हुई लम्बी

दिया दिया रंग अपने रक्त ने

 

जीवन सिखलाता है दुःख भी

पता चले  अपनों का रुख भी

मानवता  सुख  में   भूलना

वरना  कहाँ  टिका है सुख भी

 

आते  - जाते    मिलते   रहना

दुःख सह के भी खिलते रहना

हँसते  चेहरे    अच्छे    लगते

उदासियों  को   सिलते रहना

 

मैं  तो बस  ऐसे  ही जिया हूँ

जीवन को  जोड़ा व सिया है

ध्येय  बड़ा   रखा   था   मैंने

इसीलिये विष को भी पिया हूँ

 

पवन तिवारी

१/०१/२०२२

  

नाव अपने ही ढंग से

नाव अपने ही ढंग से खेना तुम

जिससे है प्यार ध्यान देना तुम

तुमसे ज्यादा नहीं अपेक्षा बस

फोन पर हाल  चाल लेना तुम

 

प्यार  थे   और  कल रहोगे तुम

मुझको बस मित्र ही कहोगे तुम

ये  भी  संबंध  कम  नहीं तुमसे

इतने  से  भी  बहुत सहोगे तुम

 

ख़्वाब  में  भी  कभी आना तुम

हाँ, मगर  दूर भी न जाना तुम

तुम मुझे जानते हो ये भी बहुत

है दुआ चाहो  जिसे पाना तुम

 

हो क्या मेरे  लिए  न जानो तुम

तुम मुझे मानो या ना मानो तुम

तुम अपने पथ पे हँस के बढ़ते रहो  

हो वो पूरा   कि जिसे ठानो तुम

 

पवन तिवारी

२३/१२/२०२१