अकेलापन
भी
भाता है
किन्त्तु
लम्बा तो काटे
है
घुमड़
आती है स्मृतियाँ
कि बैठे उनको छांटे
है
कभी
चेहरा है खिल जाता
उदासी
भी
कभी घेरे
कि
दुःख सुख मित्र याद आते
समय
के चल रहे फेरे
कभी
कोई याद आता
है
कभी
माँ याद आती
है
अकेले
में तो दुविधाओं
की
लहरें आती जाती हैं
सभी
सुविधाएँ हों भी तो
वीरानी
खल ही जाती है
सजग
रहना भटकना भी
अचानक
से
डराती है
अकेले देर तक देखो
कभी
तुम चुप नहीं रहना
कि
मन की मार को चुपचाप
बिलकुल
भी नहीं सहना
कि
ख़ुद से बात करना और
हँस
कर
गुनगुनाना तुम
कोई
सुनता नहीं तुमको
दीवारों को सुनाना तुम
तुम्हारी जिन्दगी
में
हल्की–हल्की
मौज आएगी
अकेलापन
भी
हारेगा
ज़िन्दगी जीत जायेगी
पवन
तिवारी
१३/०१/२०२२
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