जीवन
का तोय सूखता है
अब
हिय से कौन पूछता
है
सब अपनी आपा धापी
में
धन
पर ही सकल रीझता है
अब कौन लोक
से डरता है
जैसे
भी हो बस भरता
है
अब सम्बंधों का निर्धारण
बहुधा
बस द्रव्य ही करता है
देवों
से बढ़कर द्रव्य हुआ
कौशल्या
का ज्यों हव्य हुआ
इसका
महात्म्य कुछ ऐसा है
प्रति
कर्ण का पावन श्रव्य हुआ
माना
कि ना यह सत्य हुआ
पर
यह तो सच यह तथ्य हुआ
निर्णय
तो तथ्यों से होते
सो
निष्फल सच का कथ्य हुआ
पवन
तिवारी
०५/०१/२०२२
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