सिखलाया
क्या बुरे वक़्त ने
कैसे
प्रभु को पाया भक्त ने
दुःख
की जो रेल हुई लम्बी
दिया
दिया रंग अपने रक्त ने
जीवन
सिखलाता है दुःख भी
पता
चले अपनों का रुख भी
मानवता
सुख में न भूलना
वरना
कहाँ टिका है सुख भी
आते - जाते मिलते रहना
दुःख
सह के भी खिलते रहना
हँसते
चेहरे अच्छे लगते
उदासियों
को सिलते
रहना
मैं तो बस ऐसे ही
जिया हूँ
जीवन
को जोड़ा व सिया है
ध्येय
बड़ा रखा था मैंने
इसीलिये
विष को भी पिया हूँ
पवन
तिवारी
१/०१/२०२२
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