यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 4 जुलाई 2022

नाव अपने ही ढंग से

नाव अपने ही ढंग से खेना तुम

जिससे है प्यार ध्यान देना तुम

तुमसे ज्यादा नहीं अपेक्षा बस

फोन पर हाल  चाल लेना तुम

 

प्यार  थे   और  कल रहोगे तुम

मुझको बस मित्र ही कहोगे तुम

ये  भी  संबंध  कम  नहीं तुमसे

इतने  से  भी  बहुत सहोगे तुम

 

ख़्वाब  में  भी  कभी आना तुम

हाँ, मगर  दूर भी न जाना तुम

तुम मुझे जानते हो ये भी बहुत

है दुआ चाहो  जिसे पाना तुम

 

हो क्या मेरे  लिए  न जानो तुम

तुम मुझे मानो या ना मानो तुम

तुम अपने पथ पे हँस के बढ़ते रहो  

हो वो पूरा   कि जिसे ठानो तुम

 

पवन तिवारी

२३/१२/२०२१

 

 

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