तुमसे
मिल सकता था बहाने से
उलझा
सकता भी था फसाने से
किन्त्तु
मेरा स्वभाव झूठ
नहीं
कैसे आता बिना
बुलाने से
दिल
ने जब माना तुमसे प्यार मुझे
तय किया करना है
इजहार मुझे
तुम्हरे
दिल में है क्या नहीं सोचा
हो गया तुमसे कहा यार मुझे
पहले
तुमने
मुझे डराया था
एक क्षण को
लगा पराया था
अगले
क्षण तुम्हरे अधर मुस्काये
जैसे
मधुमास हँस के
आया था
तुमने
हँसकर गले लगाया था
खुशियाँ
सारे जहाँ की पाया था
सबकी
किस्मत में ये होता नहीं
पुण्य
था ऐसा प्यार पाया था
कोई
उपहार ही न लाया था
नैनों
में प्यार भर के लाया था
मानो
तो मान इसे भी सकते
बाहों
का हार ले के आया था
याद
आते हैं
दिन सुहाने थे
कितने मासूम
थे सयाने थे
अब
भी मासूमियत जी वैसी
आजमाते हैं तब
दीवाने थे
पवन
तिवारी
२३/१२/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें