माना
तालाब ज़रा बूढ़े
हुए
जल
के बूढ़ों को ज़रा जीने दो
माना
तुम पीते नहीं जल इनका
विहग,
मवेशियों को पीने दो
धरा
की गोद ठंडी रखते
हैं
खेतों
को नेह इन्हें देने
दो
ये तो सच्चे हमारे
पुरखे हैं
इन्हें
भी साँस खुल के लेने दो
ये
तो पानी से प्रेम करते है
पानी
का पानी ज़रा रहने दो
ज़िंदगी
पानी बिना है ही नहीं
है जहाँ पानी
उसे बहने दो
ताल,
सरिता, कुएँ, धरोहर हैं
इनकी
रक्षा से पुण्य मिलता है
जल
को हम स्वच्छ सुरक्षित रखें
इनसे
हम क्या जगत ही खिलता है
पवन
तिवारी
२०/०१/२०२२
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