दर्द लटके हैं कितने बाहों
में
शेष पीडाएं सिसकी आहों में
छल का क़िस्सा तो सारा अपनों
का
ग़ैर आये ही नहीं राहों में
जो मेरे नाम कि शपथ लेते
बातों – बातों में दुहाई देते
आधे रस्ते में छोड़ वे भागे
वे भला नाव मेरी क्या खेते
ऐसे क़िस्सों से भरा जीवन है
घाव पीड़ा से भरा तन मन है
लोग कहते हैं जरा हँस भी दो
कैसे हँस दूँ कि अपना दुःख
धन है
सारे सच्चों ने मार खायी है
उनके हिस्से में बेवफाई
है
लोग ठगते हैं वे
ठगाते हैं
भाग्य सीधों ने ऐसी पायी है
पवन तिवारी