पीड़ा में भी खड़े हैं
साहस के बल अड़े हैं
एक हाथ कट गया है
एक हाथ से लड़े हैं
कुछ खा के यूँ पड़े हैं
ज्यों पेड़ की जड़े
हैं
विष से भरे हुए ये
सुवरण से ये घड़े
हैं
कहने को जो बड़े हैं
कई उनके भी धड़े हैं
पिट्ठूगिरी है प्यारी
सच वाले सड़ रहे हैं
प्रतिभा लड़ेगी कब
तक
अंतिम है साँस तब तक
कुछ मृत्यु कुछ विजय ले
आये हैं किंतु अब तक
पवन तिवारी
२०/०६/२०२३
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