यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 30 सितंबर 2023

मर रहे हैं ज़िन्दगी को रख हथेली



मर रहे हैं ज़िन्दगी  को रख हथेली

मृत्यु को कहता  सरल कैसी पहेली

पर्वतों सा धैर्य पर पत्थर सा लगता

झोपड़ों में  रह  रहा  कहता  हवेली

लगता बड़बोला कभी तो दार्शनिक है

गीत खुशियों के हूँ सुनता गा रहा है

 

दर्द  है,  दीवार,  दरवाजा  खड़ा  है

लाश सी है ज़िन्दगी फिर भी अड़ा है

कहता अब भी साँस मेरी चल रही है

आस की  लाठी लिए अब भी पड़ा है

जब कोई  उससे  अँधेरी बात कहता

हँस के कहता सूर्य का रथ आ रहा है

 

लग  रहा  है  पेड़  टूटी  पत्तियों सा

बात करता खिड़कियों से साथियों सा

पूछो  तो  ऐसे  बताता  भीड़  में है

मुस्कराता  खंडहर  में  वादियों  सा

है बड़ा विक्षिप्त  या  अचरज कहूँ मैं

जो भी  आये  उसपे जैसे छा रहा है


कुछ तो कहते हो  चुका बर्बाद है वो

वो सदा हँस  के  कहे आबाद है वो

हो रही चुकने की उसके घोषणा जब

लेटे - लेटे  कह  रहा  नाबाद है वो

आने वाला कल  उसे अद्भुत कहेगा

जैसा भी हो  काल उसको भा रहा है

 

पवन तिवारी

२७/०९/२०२३ 

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