यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

जब सब तुमसे भाग रहे हैं



जब सब तुमसे भाग रहे हैं,

सब तुमको अनसुना हैं करते,

हाथ जोड़ कर जो मिलते थे;

देख के वे अनजान हैं बनते!

नम्बर जो पहले मांगे थे,

वे न उठाते फोन तुम्हारे!

 

समय ने थोड़ा क्या मुँह फेरा,

बदल गये हैं सारे प्यारे;

समय नहीं इक जैसा रहता

अदला बदली चलती रहती!

कुछ भी स्थिर नहीं रहा है,

रिश्ते भी दिन रात के जैसे!

 

एक नहीं बदले हैं केवल

ध्यान दिया क्या देव तुम्हारे!

उनसे कह दो, वे सब सुनते;

कभी न वे उपहास उड़ाते!

जब भी जाओगे तुम मिलने

वहीं मिलेंगे, जहाँ मिले थे.

 

सदा सुने थे, सदा सुनेंगे,

बस उनसे स्थाई नाता!

शेष है जो भी कुछ माया है,

इतना समझ लिया भी जिसने

फिर तो दुःख भी गाया है.

 

पवन तिवारी

१२/१२/२०२४  


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