यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

अर्थ


 



आज कल कुछ ज्यादा ही

बदल दिया है

अर्थ ने खुद से अधिक औरों को,

अब यही देखो-

अर्थ ने ज़िन्दगी का

अर्थ बदल दिया है!

अर्थ न हो तो ज़िन्दगी का

जैसे अर्थ ही नहीं रह गया है!

अर्थ न हो तो लोग

जाने क्या - क्या

अर्थ लगाते हैं ? और

अर्थ हो तो अर्थ ही अर्थ,

अर्थ के जाने कितने अर्थ !

और न हो तो,

कई बार अर्थ का अनर्थ !

अर्थ क्या - क्या

अनर्थ करता है ;होने पर

और न होने पर,

कि अर्थ का अर्थ ही

नहीं रह जाता !

या रहता है पर,

समझ में नहीं आता !

अर्थ का क्या अर्थ निकालें-

अच्छा या बुरा! फिर भी,

अर्थ का अर्थ तो है,

समझ आये या न आये,

पर अर्थ का अर्थ,

कम - ज्यादा बच्चे,

बूढ़े, महिला, खासकर

गरीब को सबसे ज्यादा

समझ में आता है !

अर्थ के कितने अर्थ हैं-

कोई नहीं जानता !

बस अर्थ जानता है-

अपना सही अर्थ !

शेष को मानता है-

अपने आगे व्यर्थ !

कोई व्यर्थ हो न हो,पर

अर्थ का अर्थ तो है,

इसे सब मानते हैं!

इससे अधिक

अर्थ का अर्थ क्या समझा...?

 

पवन तिवारी

०७/१२/२०२४   

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