आज कल कुछ ज्यादा ही
बदल दिया है
अर्थ ने खुद से अधिक औरों को,
अब यही देखो-
अर्थ ने ज़िन्दगी का
अर्थ बदल दिया है!
अर्थ न हो तो ज़िन्दगी का
जैसे अर्थ ही नहीं रह गया है!
अर्थ न हो तो लोग
जाने क्या - क्या
अर्थ लगाते हैं ? और
अर्थ हो तो अर्थ ही अर्थ,
अर्थ के जाने कितने अर्थ !
और न हो तो,
कई बार अर्थ का अनर्थ !
अर्थ क्या - क्या
अनर्थ करता है ;होने पर
और न होने पर,
कि अर्थ का अर्थ ही
नहीं रह जाता !
या रहता है पर,
समझ में नहीं आता !
अर्थ का क्या अर्थ निकालें-
अच्छा या बुरा! फिर भी,
अर्थ का अर्थ तो है,
समझ आये या न आये,
पर अर्थ का अर्थ,
कम - ज्यादा बच्चे,
बूढ़े, महिला, खासकर
गरीब को सबसे ज्यादा
समझ में आता है !
अर्थ के कितने अर्थ हैं-
कोई नहीं जानता !
बस अर्थ जानता है-
अपना सही अर्थ !
शेष को मानता है-
अपने आगे व्यर्थ !
कोई व्यर्थ हो न हो,पर
अर्थ का अर्थ तो है,
इसे सब मानते हैं!
इससे अधिक
अर्थ का अर्थ क्या समझा...?
पवन तिवारी
०७/१२/२०२४
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