यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

खिड़की से निहारा



खिड़की से निहारा

तो देखा बाहर

बहुत कुछ रहा है,

कुछ ऐसा कि धड़ से

खिड़की बंद कर दिया !

और अंदर में कोई

जैसे- रो रहा है;

सिसक – सिसक कर !

और हाँ, ध्यान गया इधर

तो देखा बगल में

कोई सो रहा है !

जैसे मैं किसी को

पहचानता ही नहीं,

शायद खुद को भी !

इतना कुछ कहने पर

आप तो समझ ही गये होंगे

कि मैं क्या कह रहा हूँ ?

और यदि नहीं समझे

तो मैं इससे ज्यादा

बताऊंगा नहीं,

खैर, छोड़िये ! अच्छा ये बताइये-

अंदर से रोता हुआ आदमी

बाहर से हंसते हुए

कैसा लगता है ?



पवन तिवारी

३/१२/२०२४  

  

 


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