खिड़की से निहारा
तो देखा बाहर
बहुत कुछ रहा है,
कुछ ऐसा कि धड़ से
खिड़की बंद कर दिया !
और अंदर में कोई
जैसे- रो रहा है;
सिसक – सिसक कर !
और हाँ, ध्यान गया इधर
तो देखा बगल में
कोई सो रहा है !
जैसे मैं किसी को
पहचानता ही नहीं,
शायद खुद को भी !
इतना कुछ कहने पर
आप तो समझ ही गये होंगे
कि मैं क्या कह रहा हूँ ?
और यदि नहीं समझे
तो मैं इससे ज्यादा
बताऊंगा नहीं,
खैर, छोड़िये ! अच्छा ये
बताइये-
अंदर से रोता हुआ आदमी
बाहर से हंसते हुए
कैसा लगता है ?
पवन तिवारी
३/१२/२०२४
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