कविता अश्रु बहाती कवि की
सजल नयन बाँहों में
रक्त से सींचे गये शब्द का मोल
नहीं जल जितना
इस शिक्षित समाज में भी
साहित्य है सकुचाया सा
शब्द साधना समझ न पाया पढ़ लिखकर
भी इतना
वर्तमान भी भूल गया है अब शब्दों
की महिमा
शब्द ब्रह्म है, गायत्री है, वही शारदा, सविता
गज़ब समय कि पढ़े लिखे पढ़ने
सुनने से भगते
कौन बताये संवेदन की उच्च
समुच्चय कविता
उस समाज का क्या होगा
साहित्य विरोधी जो है
जिसके घर का हर कोना ही
पुस्तक से वंचित है
उसका कैसे संभव होगा,
संस्कार उत्थान भला
जिसके उथले से जीवन में, केवल मद संचित है
जिस समाज में मान नहीं होता कवि लेखक का
उस समाज का कभी सही उत्थान नहीं होता
जिस समाज में कवि भूखा,
लेखक अपमानित है
उस समाज का कहीं कभी सम्मान नहीं होता
पवन तिवारी
३/१२/२०२४
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