मुझको ठुकराने वालों खोजोगे पछताओगे
आओगे सौ बार यहाँ
पर मुझको ना पाओगे
समय मुझे जो नचा रहा है क्या तुमको छोड़ेगा
बली समझने वाले खुद को समय से बच जाओगे
विश्व विजेता अर्जुन इक दिन भीलों से हारे थे
परम मित्र थे वासुदेव
के, बहनोई प्यारे थे
कुरुक्षेत्र में वासुदेव उनके रथ
के हंकवइया
समय चक्र घूमा तो
गांडीवधारी बेचारे थे
भूनी मछली महाराज की
जल में कूद गयी थी
लकड़ी की खूंटी मोती की माला निगल गयी थी
चोरी में वे जेल गये जो चक्रवर्ती कल तक थे
सारी आभा समय बदलते क्षण में चली गयी
समय की गद्दी पर विराज कर यूँ इठलाने वाले
समय के बूते आज
मेरा उपहास उड़ाने वाले
मेरी चौखट आने वाले
आज बने अनजाने
झुका के मस्तक फिर आयेंगे
आँख दिखाने वाले
पवन तिवारी
३०/११/२०२४
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