यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 10 सितंबर 2016

आइये जाने फिर क्या हुआ...? जब दैत्यगुरु शुक्राचार्य की बेटी को देवगुरु बृहस्पति के बेटे से प्रेम हुआ...





आइये आज एक अद्भुत एवं अनोखी पौराणिक कहानी मेरे साथ ,मेरे शब्दों में पढ़िए...  एक समय ऐसा आया. जब दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी और देव गुरु बृहस्पति के बेटे शुक्राचार्य के आश्रम में रहने लगे थेऔर उसी समय दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य की बेटी परम सुन्दरी देवयानी को देवगुरू बृहस्पति के बेटे कच से एकतरफा प्रेम हो गया था. उस अतृप्त एवं अधूरी प्रेम कहानी के प्रभाव से पूरा इतिहास ही बदल गया.तो आइये मेरे साथ इस कहानी को आगे बढ़ाते हैं ..... शुक्राचार्य और बृहस्पति गुरुभाई थे. दोनों के गुरू अंगिरा ऋषि थे. शुक्राचार्य अपने सहपाठी बृहस्पति से अधिक प्रतिभाशाली थे,किन्तु गुरू बृहस्पति को अधिक मानते थे क्योंकि वे गुरु होने के साथ बृहस्पति के पिता भी थे.आगे चलकर बृहस्पति देवों के गुरु बने,जबकि शुक्राचार्य उस पद के अधिक योग्य थे.यहाँ भी उनके साथ पक्षपात हुआ. ऐसे में वे हारे हुए दानवों के गुरू बने और अपने बेहतरीन मार्गदर्शन में दानवों के हाथों कई बार देवताओं को हरवाया., किन्तु दैत्य हर युद्ध में मारे जाते, जिससे उनकी संख्या घटने लगी. इसके लिए शुक्राचार्य ने भगवान् को प्रसन्नकर मृत संजीवनी विद्द्या प्राप्त की. जिससे युद्ध में मारे गये दैत्यों को फिर से जीवित कर देते. किन्तु मरे हुए देवता जिन्दा नहीं होते थे. इससे देवता और देव गुरू बृहस्पति दोनों चिंतित थे. ऐसे में सुनियोजित तरीके से देव मण्डली में हर प्रकार से परम तेजस्वी,विनयशील और सबसे सुयोग्य बृहस्पतिपुत्र कच को शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए भेजा गया .पहले तो शुक्राचार्य ने आनाकानी की, परन्तु कच की सेवा, समर्पण और विनयशील हठ के आगे शुक्राचार्य को झुकना पड़ा और उन्होंने कच को शिष्य स्वीकार कर, संजीवनी विद्या सिखाना प्रारम्भ कर दिया.उसी आश्रम में शुक्राचार्य की रूपवती बेटी देवयानी भी पिता के साथ रहती थी .वे कुछ ही दिनों में कच के गुणों और रूप सौंदर्य पर मर मिटी.कच गुरू पुत्री होने के कारण देवयानी का भी बेहद सम्मान करते और यदि देवयानी कोई कार्य करने में अक्षम होती या उन्हें असुविधा होती तो कच वो कार्य बिना हिचक सहजता से कर देते. इस बीच दैत्यों को पता चल गया कि उनके दुश्मन देवगुरू बृहस्पति का पुत्र संजीवनी विद्या सीखने के लिए हमारे गुरु के पास आया है. उन्होंने एक दिन मौका पाकर जंगल में गौ सेवा करते कच की हत्या कर दी. शाम को जब गायों के साथ कच आश्रम में नहीं लौटा,तो देवयानी व्याकुल हो गयी. पिता से पूछा. ध्यान लगाकर जब शुक्राचार्य ने देखा तो पता चला दैत्यों ने जंगल में कच की हत्या कर दी थी . देवयानी ने पिता से संजीवनी विद्या का प्रयोग कर कच को जिन्दा करने का हठ किया और शुक्राचार्य को कच को जीवित करना पड़ा. कुछ दिनों बाद दैत्यों ने फिर घात लगाकर कच को मार डाला. देवयानी ने पिता से कहकर कच को फिर जीवित करा दिया. तीसरी बार फिर दैत्यों ने कच को मारकर उसकी अस्थियों [हड्डियों] का चूरा बनाकर मदिरा में मिलाकर अपने गुरु शुक्राचार्य को पिला दिया, ताकि कच फिर से जीवित न हो सके. कच को न पाकर देवयानी विक्षिप्त सी हो गयी.शुक्राचार्य से बोली- यदि कच जीवित न मिला तो मेरा जीवित रहना संभव नहीं. शुक्राचार्य ने अपने तपबल से जान लिया कि कच उनके पेट में है.पेट फाड़ने से शुक्राचार्य की मृत्यु हो जाती. ऐसे में क्या किया जाये. जिस प्रकार देवयानी की जान कच में थी. उसी तरह शुक्राचार्य की जान उनकी बेटी देवयानी में थी.देवयानी ने पिता से कहा आप पहले मुझे संजीवनी विद्या सिखा दीजिये. उसके बाद हम आप को पुनः जिन्दा कर देंगे और फिर ऐसा ही हुआ. शुक्राचार्य का पेट फाड़कर कच को बाहर निकाला गया,जिस कारण शुक्राचार्य की मृत्यु हो गयी.फिर से संजीवनी विद्या का प्रयोग कर पिता और कच को देवयानी ने जीवित किया. क्या ऐसा प्रेम कभी देखा या सुना है आप ने ? कि किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी के लिए अपने पिता की हत्या कर दी और बेटी की खुसी के लिए पिता ने सहजता से अपनी ह्त्या करवाना स्वीकार कर लिया. ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं. पौराणिक कथाओं में एक महान कथा है कच और देवयानी की प्रेम कथा...कच जब संजीवनी विद्या सीखकर अपने घर जाने लगे तब देवयानी ने कच से कहा - मैं आप से प्रेम करती हूँ. आप मुझसे विवाह कर लीजिये. किन्तु कच ने यह कहते हुए मना कर दिया कि आप मेरे गुरु की बेटी हो, मेरी बहन जैसी हो. मैंने सदैव आप को श्रद्धा की दृष्टि से देखा. मैं आप से विवाह नहीं कर सकता. प्यार में अन्धी देवयानी ने कच को श्राप दे दिया कि मेरे पिता से सीखी हुई संजीवनी विद्या काम नहीं करेगी. कच ने कहा कोई बात नहीं. मैं दूसरे को सिखा दूंगा, किन्तु आप ने मुझे कामातुर होकर, क्रोध में आकर श्राप दिया है .इसलिए मैं भी आप को श्राप देता हूँ कि आप का विवाह ब्राह्मण पुत्र से कदापि नहीं होगा. आगे चलकर ब्राह्मण पुत्री देवयानी का विवाह प्रतापी राजा [ क्षत्रिय ] ययाति से हुआ. आगे चलकर इन्ही से यदुवंश और पुरुवंश चला. इति शुभमकिसी के बहुत सताने पर भी उसको सताने का प्रयास नहीं करना चाहिए.क्योंकि दुखी व्यक्ति का शोक ही सताने वाले व्यक्ति का नाश कर देता है- पवन तिवारी                   
























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