देखा जब से तुम्हें
लगे  सम्भावना
तुम  ही  हो प्रेम की मेरे उद्भावना
उर की व्याकुलता मिट
जाए तुम जो मिलो 
मेरे  हिय की तुम्हीं पावन  भावना  
प्रति  तुम्हारे  मेरे  मन में सद्भाव है
प्रेम करना  प्रकृति
का भी स्वभाव है 
मैं  भी  पूरा
हो जाऊं  मिले प्रेम जो
प्रेम  का  मात्र  जीवन  में अभाव है 
स्वप्न  में भी  तुम्हारे  ही सब रंग हैं 
बिन  तुम्हारे  स्वप्न  सारे बाद रंग हैं
प्रति पल,प्रति क्षण बस  तुम्हीं सूझती
साथ  हो  जो
तुम्हारा  तो जग संग है  
मेरे  उर  की  संसद   पड़ी
 भंग  है 
मेरी   दिनचर्या
  आवारा   बेढंग  है
तुम जो आओगी तो  बात
बन जायेगी 
फड़क  के  कह  रहा  दाहिना अंग है 
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८ 
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
 

 
 

