यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

पवन बाबू


समझ रहे हो अपनी घेराबंदी को पवन बाबू
वक़्त  आ गया है घोड़े पर चढ़ो पवन बाबू

ये जो भी जलते हैं जलने दो रोशनी होगी
इनके उजाले  में ही बढ़ते  रहो पवन बाबू


दुश्मनों  की  कुढ़न में भी मजा आता है
हाँ, तो  और  क्या  कहते हो पवन बाबू  

ये जो तुम्हारे दोस्त दुश्मन बन रहे हैं न
सफलता की  निशानी हैं  बढ़ो पवन बाबू 

नेपथ्य में गालियाँ  और सामने से स्तुति
अच्छे दिन आ गये मुस्करा दो पवन बाबू  

इतिहास बस तुम्हारी ही तरफ देख रहा है
बेधड़क  संघर्ष का झंडा उठाओ पवन बाबू  

तुम्हें गिरते देख मज़ा आया है दुश्मनों को
मर जायेंगे सब बस हँसकर उठो पवन बाबू

रास्ता रोके है हर अच्छे का जमाना हरदम
पवन हो, पवन  की तरह, बहो  पवन बाबू



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

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