कहने को हम राज दुलारे
कुल दीपक कह ताने मारे
थोड़े खेले मस्ती कर लें
कहलाते बिलकुल आवारे
बेटी कहकर बच जाती है
हमको डांट खिलाती है
दुनियाँ भी माँ बेटी पर ही
कविता गीत सुनाती है
बिटिया,गुड़िया, देवी, रानी
रौनक परी कहाती है
हम बेटों के हिस्से में
क्यों
मार - कुटाई
आती है
घर से बाहर धूल धूप में
हम ही जान लगाते
हैं
बड़े हुए तो सबका ज़िम्मा
दोनों काँध उठाते हैं
बहन की शादी माँ की दवाई
बाबू जी की आँख बनाई
खेती से घर तक का खर्चा
अपने हाल की ना सुनवाई
लड़का हूँ सो रोना मना है
अपना सपना टूटा चना है
हम भी हाड़ मास के बच्चे
बेटा होना जैसे गुना
है
बेटों पर भी कोई
कहानी
कोई किस्सा लिख दो ना
बहनें प्यारी हमें
दुलारी
हम पर भी कुछ लिख दो ना
बेटों का कब स्वर आयेगा
कोई गीत सुनाएगा
ओ रचने वालों कविता में
किस दिन बेटा आयेगा
पवन तिवारी
२७/१०/२०२२