झिलमिल स्वप्न लिए नैनों
में लौट के आया हूँ
करके युद्ध मृत्यु
से सीधे जीवन लाया हूँ
बहुत रुलाये नैन
नासिका दोनों ही
टपके
पोंछ कलाई से
सिसका हूँ पर फिर गाया हूँ
मृत्यु सरल है कठिन है जीवन
जीवन भटके जैसे
वन – वन
फिर भी प्रेम करें जीवन से
जीवन ही है तन मन
धन
जीवन है तो अभिलाषा है
चारो ओर दिखे आशा
है
नये स्वप्न नए लक्ष्य हैं
गढ़ते
जीवन की कितनी भाषा है
मृत्यु निरस है
खेल बिगाड़े
अभिलाषा सपनों को मारे
इसीलिये ज़िन्दगी प्रशंसित
जो जग में जीवन को
धारे
पवन तिवारी
०५/१०/२०२२
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय पवन जी।अनुभूतियाँ व्यक्तिगत ही सही पर पीर सारे जग की कहती हैं।बहुत- बहुत शुभकामनाएं 🌷
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