आया
अपने गाँव तो कल खेत की पकड़ी डगर
रास्ते में टिटहरी की पड़ गयी मुझ पर नज़र
बोली जामुन कब तलक भाकोगे यूँ ही दर-बदर
हरित भोली वादियों में छोड़ कर आओ नगर
गाँव में मुझे देखकर हँसते हुए बोली नहर
अब
न जाना छोड़ कर तुम अपनी माटी गाँव घर
कुकुरमुत्ता चहक बोला रहना अब इसी हरगुजर
फुदक गौरैया भी बोली यहीं पर जाओ ठहर
शहर
की चालाकियों से सिकुड़ता जाता जिगर
बथुए
ने रो कर कहा कि लौट आओ इस डगर
बाह में शरमाया महुआ आम हो बोला निडर
नगर
के जीवन में मिलता स्वास्थ्य से ज्यादा सगर
मेंड़ बोली खेत बोला पवन जी आओ इधर
दूब
मीठे स्वर में बोली आप का मन है किधर
गिलहरी
ने कहा कवि जी लौट आओ अपनी दर
नगर
में ज्यादा है नकली असली केवल है जहर
नेह
सिंचित बोल सुनकर हिय हुआ था तरबतर
मैं
रहूँगा गाँव में अब सुन हुआ खुश भी भ्रमर
बाग
पोखर धूल मिट्टी सरसो तक पहुँची ख़बर
गाँव
में कविता की सरिता अब बहेगी हर प्रहर
पवन
तिवारी
०८/०३/२०२१