अम्बर
में तो घिर आये
थे
हिय
में भी बादल घिर आये
नैना कब
से बरस रहे थे
मेघा
अब बरसन
को आये
आग
लगी है सपनों में भी
हाय
इन्हें अब कौन बुझाए
अभिलाषायें
तड़प के जलती
हाय
इन्हें अब कौन बचाए
अपनों
ने भी आग लगायी
तभी
तमाशा देख रहे हैं
मरुथल
हो गये थे मेरे सुख से
अब
मेरे दुःख से सींच रहे हैं
ना
भाये चिड़ियों का कलरव
भोर
में भोर भी नहीं सुहाये
जिस
चांदनी को तरसा करता
उसे देख
अब मन भुसुराये
सब
कुछ मिल गया प्रेम मिला तो
हम
थे फूलों नहीं
समाये
इसी प्रेम
ने लूट भी डाला
इतना
दुःख कोई कैसे गाये
मरना
है अंतिम पथ केवल
पर
उससे पहले लड़ना
है
दुःख
को भी है मजा चखाना
अच्छे
से उसको
जड़ना है
पवन
तिवारी
२१/०४/२०२१
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