वो
नज़ाकत समझ नहीं पाया
ज़रा
सी बात सह नहीं
पाया
कर
नहीं पाता कुछ भी आसाँ वो
धारा
के साथ बह नहीं
पाता
उसकी
सुन्दरता जान ले बैठी
फूल
होकर महक नहीं पाया
देखते
– देखते हुआ उसका
तपाक
बोला रह नहीं पाया
गिरा
भी तो वो अपनी शर्तों पर
यूँ
ही चुपचाप ढह नहीं पाया
पूरा
घर ही संभाले रखता था
खुद
पे आया सम्भल नहीं पाया
पवन
तिवारी
१४/०३/२०२१
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