फागुन में बदली छायी है
हाय
घटा घिर के आयी है
इंद्र
धनुष भी दिया दिखाई
देवों को होली
लायी है
बादल
भी होली खेलेंगे
इंद्र
धनुष से रंग रेलेंगे
पानी
के अधिपति वे ही हैं
पिचकारी
हजार ठेलेंगे
धरती
रंग बिरंगी नभ भी
बच्चे
खेल रहे
हैं अब भी
रंगों जैसा
ही जीवन है
करें
शिकायत ये जग तब भी
जैसे देव
रंगीले होते
वैसे
मनुज छबीले होते
दोनों
के स्वभाव मिलते हैं
रिश्ते
सभी रसीले होते
पवन
तिवारी
१३/०३/२०२१
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