रात
धीमें से ढल रही होगी
हवा
भी तेज चल रही होगी
प्यार
करती है कह नहीं पाती
अपनी
खुशियों को छल रही होगी
प्रेम
में छल मिला उसे जब से
बर्फ
सी रोज गल रही होगी
कचरे
में आँख खुली थी उसकी
दूब
के जैसी पल
रही होगी
प्रेम
का कोयला मिला जब से
धीमी
धीमी सी जल रही होगी
पवन
तिवारी
१२/०३/२०२१
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