यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

सुलझे लोगों में

सुलझे लोगों में  बड़ी उलझन है

खुद से ही खुद की होती अनबन है

ढूंढने  से  नहीं   मिलते   अपने

जिन्दगी  हो  गयी सघन वन है

 

सारे किस्सों की मौत होने लगी

गाँव की ख़ुशबू कहीं सोने लगी

दादी  नानी  से  छिटकते जाते

उनकी मासूमियत है खोने लगी

 

जल्दबाजी का  सबमें जोर हुआ

आधुनिकता का बहुत शोर हुआ

संस्कृति को समझते पिछड़ापन

लोक धुन सुन के बहुत बोर हुआ

 

अपनी भाषा भी फीकी लगती है

आशा  अंग्रेजियत   से  जगती  है

धोती   कुर्ते   में   गँवारू  समझें

अर्धनग्नों  के   पीछे   भागती  है


पवन तिवारी

१२/०३/२०२१ 

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