यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

न रहे मेरे ही सपने मेरे

न रहे मेरे  ही  सपने  मेरे

वक्त हिलते लगे कटने मेरे

 

वक्त झुकता जो दिखा मेरी तरफ

ग़ैर  लगने  लगे  अपने  मेरे

 

ख़बर फैली जो उसके आने की

सपने भी लग  गये  जगने मेरे

 

उसे देखा तो कैनवास पे फिर

हाथ खुद ही  लगे  चलने मेरे

 

जब से गप मेरे मीठे लफ्जों को

आते कुछ लफ़्ज को चखने मेरे  

 

पवन तिवारी

११/०३/२०२१

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें