यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 10 नवंबर 2018

अक्सर लोग सोचते हैं


अक्सर लोग सोचते हैं और

अक्सर उद्घाटित भी करते हैं

अपनी सफलताओं के बारे में

विशेष उपलब्धियों के बारे में

देते हैं श्रेय अपने अपने

सबसे निकट के संबंधों को

और बहुत से लोग अपने मित्रों को

कुछ लोग ऐसे भी

जो कुछ भाग्य को

कुछ माता-पिता व

शुभचिंतकों के आशीष को

और कुछ लोग मात्र स्वयं के कर्म

और योग्यता को

मैं इन सबसे इतर सोचता हूँ

कभी आप भी सोचना

ठंडे मन से एकांत में

शायद मेरा सोचना

“ठीक” के आसपास या ठीक लगे

मुझे लगता है

हमारी उपलब्धियों और

बड़ी सफलताओं का श्रेय

हमारे शत्रुओं और निंदकों को जाता है

जो हमें लताड़ते हैं,

अपमानित करना चाहते हैं

धिक्कार हैं और

निकम्मा घोषित करते हैं

और हम उसके प्रतिरोध में

उसकी घोषणाओं को

गलत साबित करने के लिए

जुट जाते हैं प्राण प्रण से

और फिर एक दिन हम

उन्हें गलत साबित कर देते हैं

वास्तव में वही हमारे सच्चे प्रेरक होते हैं

हमारी उपलब्धियों का श्रेय

उन्हें भी जाता है

हमारे देने या न देने से

नेपथ्य का सत्य नहीं बदल जाता

हाँ, सफलता का पर्दा

कई बार हमें

सत्य से वंचित कर देता है

हाँ मैं सफल तो नहीं हूँ

कोई उपलब्धि भी नहीं है

जिसे गिना सकूँ

पर अपने संघर्ष की जिजीविषा के

श्रेय का एक बड़ा हिस्सा

अपने शत्रु मित्रों के नाम करता हूँ

वह सामने से शत्रु और

नेपथ्य से मित्र हैं

अब बताइए

आप क्या सोचते हैं ?



पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

बुधवार, 7 नवंबर 2018

कितना बड़ा गुण है दोगलापन


मनुष्य असफलताओं और
सतत पीड़ा के घेरे में घिरे होने पर
स्वयं के संघर्ष के लिए
एक मात्र मिथ्या आस को
ठहराता है दोषी
प्रारब्ध और भाग्य को
कई बार इन आभासी अवलम्बों से
उबार लेता है स्वयं को
किन्तु जब उबर पाने के
नहीं दिखाई देते संकेत
तो फिर वह कहता है
ईश्वर की शायद यही इच्छा थी
हाँ यदि वह पा जाता है
कोई बड़ी उपलब्धि या सफलता
 तब वह भाग्य या प्रारब्ध अथवा
ईश्वर को नहीं देता श्रेय
वह कहता है,
मेरे अथक श्रम का परिणाम है
स्वयं के सामर्थ्य से किया है
अकेले में कभी सोचा था
आज लिख रहा हूँ
अपवादों को छोड़कर मनुष्यों में
कितना बड़ा गुण है दोगलापन

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
  

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

सत्य से भागे हुए लोग


सत्य से भागे हुए लोग अक्सर
नैतिकता के कम्बल ओढ़े हुए
अंदर से डरे हुए
बात - बात पर
औपचारिकता निभाते लोग
बहुत ही झूठे और टूटे होते हैं

कुशलक्षेम पूछने पर हर बार
अच्छा है, बढ़िया है, बहुत बढ़िया
सब मंगल है, सब कुशल है, अपना कहें
ये रटे हुए वाक्य दुहराने वाले
सबसे लुटे – पिटे, समय के पुश्तैनी दुश्मन
और रगड़े हुए होते हैं

बिना कारण के बात - बात पर
हँस देने वाले लोग
बिना कारण के बार – बार
प्रशंसा करने वाले लोग और हर बात पर
हाँ जी, हाँ जी, करने वाले
किसी के मित्र नहीं हो सकते

और हाँ एक बात पर नरम
दूसरी पर गरम
तीसरी पर प्रशंसा और
चौथी पर लाठी उठाने वालों से
सम्बन्ध रखना  और सभी
शेष सम्बन्धों की
श्रद्धांजलि करने जैसा है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com



सोमवार, 5 नवंबर 2018

वो बुलाते नहीं


वो  बुलाते  नहीं हम भी जाते नहीं
पहले मिलते थे अब आते-जाते नहीं
उनका धन बढ़ गया मेरा मन घट गया
उनको  है  दर्द हम सर झुकाते नहीं

पहले मिलते गले अब दिखाते वे हाथ
ऐसे  हालात  में  निभेगा  कैसे साथ
हाथ  भी  हमसे  अब वो मिलाते नहीं
अर्थ ने रिश्तों को किया असमय अनाथ

हैं बहाने  बहुत  से  नए  आ गये
हम तो गुज़रे नये दोस्त हैं आ गये
अर्थ ने रिश्तों  पर डाल पानी दिया
साथ में थे  कभी दूर  हम आ गये

अब मिलकर भी मिलते नहीं हैं कभी
इक  दिखावा  और  देखते  हैं सभी
अपने रिश्तों का सच जानते दोनों है
औपचारिकतावश  हैं  निभाते  अभी

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com      

वन,उपवन,सरिता,तड़ाग,सब


वन,उपवन,सरिता,तड़ाग,सब
मरू गिरि जलधि वृक्ष जलचर सब
वारि, धरा, शून्य, जड़,चेतन
इनसे जीवन, जगत, जीव सब

दया, नेह, करुणा, नैतिकता
हो सहयोग, दान, सहिष्णुता
जीवन में हो स्वस्थ स्पर्धा
हो विजयी सच्चीकर्मठता

बिन नैतिकता शून्य है शिक्षा
बिन लगाम बैरी है इच्छा
हो शिक्षा का मूल मनुष्यता
वरना शिक्षा स्वार्थ की कक्षा

संबंधों का मोल है तब तक
आपस में सौहार्द है जब तक
बिना नेह ना कोई रिश्ता
बिना सनेह निभेगा कब तक

जीवन तो सबका कटता है
बहुतों का जीवन निभता है
किन्तु तुम्हें जीना यदि जीवन
केवल तब तो प्रेम चलता है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail .com


रविवार, 4 नवंबर 2018

हम ने तेरे दिल में




हम ने तेरे दिल में मक़ाम कर लिया
बता पता  कैसे  तेरा  नाम कर लिया
प्रेम किया सच्चा नहीं की है दिल्लगी
फ़क़त तेरे लिए सुबह-शाम कर लिया

तेरी नज़र मेरी नज़र यूँ जो मिल गयी
भावना  की  रेल  दिल  तक चली  गयी
फिर साफ़-साफ इक दूजे को दिख गया
मेरी तुझमें  तेरी मुझमें  जान  आ गयी

जब हो ही गया प्यार  फिर है खुला इक़रार
कोई  कहे  कुछ  भी  सच  तो  है हमें प्यार
नया है जमाना खुला खुला कोर्ट का दरबार
नियम    से    निबाहेंगे    प्यार   में   तकरार

प्यार  बढ़ेगा  तो  फिर  परिवार  बढ़ेगा
खर्चों  का  जानम फिर  आसार  बढ़ेगा
मिलकर  चलाएंगे  हम  प्रेम  की गाड़ी
देख  लेंगे  जो   थोड़ा   उधार  बढ़ेगा

सोच  लिया  इतना किया नहीं कुछ
बढ़े  मामला  इससे  पहलें करें कुछ
प्यार में जानम थोड़ा धन भी चाहिए
सात फेरों से पहले काम कर लें कुछ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 1 नवंबर 2018

लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है













आज – कल दुश्मनों की तादाद बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है  
दुश्वारियों का क़द ऊँचा होता जा रहा है
आलोचनाओं का स्वर ऊँचा होता जा रहा है
नये नये मुखौटों की तादाद बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

आज – कल जो सोचता हूँ वो होता नहीं है
होता है वो जो कभी सोचा नहीं है
कभी नालियाँ कूदने से डर लगता था
आज-कल बेपरवाह यूं ही फाँद जाता हूँ
दुश्मनों के साथ चाहने वालों की भी संख्या बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

आज-कल अपने रूठ रहे हैं इत्ती सी बात पर
पराये अपने हो रहे हैं बस बात-बात पर
जिन्हें सुहाता न था वर्षो तक फूटी आँख भी
सामने जो पड़ता सिकुड़ जाती नाक भी
आज-कल उनकी भी इनायत बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

अब मैं थोड़ा मीठा हो गया हूँ जाने क्यों
पहले लोगों को मेरा स्वाद अक्सर कड़वा ही लगा
हाँ कुछ गिनती के दोस्तों को मीठा लगता था
अब उन्हें भी कसैला लगने लगा हूँ मैं
इन सबके बावजूद अब थोड़ी-थोड़ी पूछ भी बढ़ रही है
लगता है मेरी भी औक़ात बढ़ रही है

पुराने कट रहे हैं, नये सट रहे हैं
दोस्त भी अब खेमों में बँट रहे हैं
कुछ ज्यादा जल्दी- जल्दी जिन्दगी बदल रही है
हम भी गिरते उठते बढ़ रहे हैं
दुश्मनों की भाषा दोस्तों सी हो रही है
लगता है मेरा भी औकात बढ़ रही है  

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com