यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 5 नवंबर 2018

वो बुलाते नहीं


वो  बुलाते  नहीं हम भी जाते नहीं
पहले मिलते थे अब आते-जाते नहीं
उनका धन बढ़ गया मेरा मन घट गया
उनको  है  दर्द हम सर झुकाते नहीं

पहले मिलते गले अब दिखाते वे हाथ
ऐसे  हालात  में  निभेगा  कैसे साथ
हाथ  भी  हमसे  अब वो मिलाते नहीं
अर्थ ने रिश्तों को किया असमय अनाथ

हैं बहाने  बहुत  से  नए  आ गये
हम तो गुज़रे नये दोस्त हैं आ गये
अर्थ ने रिश्तों  पर डाल पानी दिया
साथ में थे  कभी दूर  हम आ गये

अब मिलकर भी मिलते नहीं हैं कभी
इक  दिखावा  और  देखते  हैं सभी
अपने रिश्तों का सच जानते दोनों है
औपचारिकतावश  हैं  निभाते  अभी

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com      

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