वो बुलाते नहीं हम भी जाते नहीं
पहले मिलते थे अब
आते-जाते नहीं
उनका धन बढ़ गया मेरा
मन घट गया
उनको है दर्द
हम सर झुकाते नहीं
पहले मिलते गले अब
दिखाते वे हाथ
ऐसे हालात में निभेगा कैसे साथ
हाथ भी हमसे
अब वो मिलाते नहीं
अर्थ ने रिश्तों को
किया असमय अनाथ
हैं बहाने बहुत से
नए आ गये
हम तो गुज़रे नये
दोस्त हैं आ गये
अर्थ ने रिश्तों पर डाल पानी दिया
साथ में थे कभी दूर हम आ गये
अब मिलकर भी मिलते नहीं
हैं कभी
इक दिखावा और देखते हैं सभी
अपने रिश्तों का सच
जानते दोनों है
औपचारिकतावश हैं निभाते
अभी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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