वन,उपवन,सरिता,तड़ाग,सब
मरू गिरि जलधि वृक्ष
जलचर सब
वारि, धरा, शून्य,
जड़,चेतन
इनसे जीवन, जगत, जीव सब
दया, नेह, करुणा,
नैतिकता
हो सहयोग, दान,
सहिष्णुता
जीवन में हो स्वस्थ
स्पर्धा
हो विजयी सच्चीकर्मठता
बिन नैतिकता शून्य
है शिक्षा
बिन लगाम बैरी है
इच्छा
हो शिक्षा का मूल
मनुष्यता
वरना शिक्षा स्वार्थ
की कक्षा
संबंधों का मोल है
तब तक
आपस में सौहार्द है
जब तक
बिना नेह ना कोई
रिश्ता
बिना सनेह निभेगा कब
तक
जीवन तो सबका कटता
है
बहुतों का जीवन
निभता है
किन्तु तुम्हें जीना
यदि जीवन
केवल तब तो प्रेम चलता
है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail .com
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